गीता मां का एक विशेष सन्देश

प्रिय भक्तजनों,
श्री गुरू पूर्णिमा के शुभ अवसर पर आप को सन्त सेवक दास महाराज जी का, जो अनाम आए, किसी के गुरू नहीं बने, फिर भी वह आज सद्गुरू के रूप में हमारा पथ प्रदर्शन कर रहे हैं, सन्देश देते हुए मुझे अत्यधिक हर्ष हो रहा है। उन्होंने मानव जीवन जीने के लिए पांच सूत्र बताए हैं।

मानव जीवन के पांच सूत्र

1. मानव जीवन का उद्देश्य-प्रभु प्राप्ति।
बड़े भाग मानुष तन पावा सुर दुर्लभ सब ग्रंथिन गावा।
साधन, धर्म, मोक्ष कर द्वारा जेहिं पाई परलोक संवारा।।

2. मानव जीवन का सिद्धान्त-सत्य
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप
जाके हृदय सांच है, ताके हृदय आप।

3. मानव जीवन का धर्म-सेवा (निष्काम सेवा ही पूजा है)
परहित सरस धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अध माई।

4. मानव जीवन का सार-प्रेम (आत्मान्नद का बाहरी स्वरूप है)
हरि व्यापक सर्वत्र समाना। प्रेम ते प्रकट होई में जाना।

5. मानव जीवन का आदर्ष-त्याग
मोह-माया, छल-कपट, वासना आदि का त्याग करने से मनुष्य का मन निर्मल हो जाता है और निर्मल मन ही प्रभु प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है।

सद्दगुरूदेव निराकार रूप में सदा सर्वत्र विराजमान हैं। भक्त अपनी-अपनी श्रद्धा एवं भावना अनुसार उनके दर्शन करते हैं और उनसे मार्ग दर्शन भी पाते हैं।

ॐ शान्ति ! शान्ति !! शान्ति !!!
“गीता मां”
सर्वभूत हिते रताः

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